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अपने जन्म दिन पर बेहद चिंतित दिखाई दिए हरीश रावत, गरीब और युवाओं को लेकर दिए महत्वपूर्ण सुझाव, ज़रूरी काम से ही घर से बाहर निकलने की अपील

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आरिफ नियाज़ी

प्रदेश के पूर्व मूख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने जन्म दिन पर  चिंता जताते हुए कहा कि इस समय 8:45 बजे हैं, मैं अपने देहरादून स्थित आवास की छोटी सी बालकनी में बैठा बढ़ती कोरोना स्थिति पर चिंतन कर रहा हूँ। मन में गहरी उथल-पुथल है, कोरोना की दूसरी लहर के इस प्रकोप से, आप सबके आशीर्वाद से, माँ दुर्गा और सभी देवी-देवताओं व ईष्ट देवता के आशीर्वाद से मैं बच तो जरूर गया, मगर इसने इतना कमजोर कर दिया है कि मैं उन सहस्त्रों युवाओं के लिए चिंतित हूंँ जो कोरोना से संघर्ष कर बाहर आ रहे हैं, वो देश की पूंजी हैं, पूंजी कमजोर नहीं होनी चाहिये।

हम छोटे राज्य हैं, हमारे संसाधन और कोरोना जैसी बीमारीयों से लड़ने के लिये ढांचागत सुविधाएं बहुत व्यापक और मजबूत नहीं हैं। सरकार ने कुछ कदम उठाये हैं जिसमें लगभग लॉकडाउन लगाने का निर्णय भी है, मगर  सरकार के प्रयास कभी पर्याप्त नहीं होते हैं, जब तक उसमें जन अभियान न जुट जाय, क्या यह संभव है कि हम अगले 15-20 दिन अपने घर में ही अपने को Self-imposed कर्फ्यू नियंत्रित मान लें, ताकि सरकारी एजेंसियों पर बोझ कम हो सके, डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ भी नई स्थिति का मुकाबला करने के लिये थोड़ा और अपने को बेहतर कर सकें, सरकार भी अपने संसाधनों को जुटाकर चुनौती का और बेहतर सामना करने के लिए तैयार हो सके।

मैं अपने विक्रेता बंधुओं से भी अनुरोध करना चाहता हूंँ जितना मुनाफा वो उचित मानते हैं व्यापार संगठन एक स्वनियंत्रण, स्वानुशासन लागू करें ताकि कोरोना और मंहगाई की दोहरी मार से सामान्य व्यक्ति बिल्कुल न मर जाय, रोजगार अलग छिन रहा है, रसोई चलाना मुश्किल हो रहा है और उधर यदि दुर्भाग्य से एकाद व्यक्ति भी परिवार का कोरोना की चपेट में आ जा रहा है तो उस परिवार का जीवन केवल भगवान के सहारे हो जा रहा है।

पहाड़ों में भी स्थिति गंभीर होगी, क्योंकि देश के दूसरे हिस्सों में जहां-2 लॉकडाउन लग रहा है वहां से बहुत सारे लोग फिर गांव आ सकते हैं, खैर चुनौतियां और भी बहुत सारी हैं, मगर इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार अपने संसाधनों को एकत्र करे और एक बड़ा हिस्सा अपने राज्य के नागरिकों के जीवन को बचाने में खर्च करे और एक बड़ा हिस्सा कोई भूख, अभाव से न मरे या कोई परिवार उससे त्रस्त हो जाए, ऐसी स्थिति न आये,

उसके लिए ऐसे लोगों की गणना राज्य के पास है, उन परिवारों को एक निश्चित धनराशि कोरोना_संक्रमण के इस फेस की चलते अवश्य पहुंचाई जाय व व्यवसायी भी जिंदा रह सकें, उनके लिए भी कुछ ऑक्सीजन की व्यवस्था की जाय, कुछ विकास के काम प्रतीक्षा कर लेंगे, सबसे ज्यादा इस सवाल को मैं उठाता हूंँ, मैं अपने विकास कार्यों को लेकर सवाल उठाने पर सेल्फ ऑडिटोरियम लगाने के लिए तैयार हूंँ, बशर्ते उस पैसे का उपयोग नागरिकों के जीवन को बचाने और गरीब, त्रस्त परिवारों की मदद के लिए हो और छोटे-छोटे उद्योग थोड़ा सांस ले सकें, उनको सांस भर के लिए कुछ मदद मिल जाय उसके लिए किया जाय।

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